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अंकिता भंडारी हत्याकांड में नए आरोपों से भूचाल—अभिनेत्री उर्मिला सनावर के दावों ने फिर उठाए ‘VIP एंगल’ के सवाल

उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के बहुचर्चित हत्याकांड को लेकर एक बार फिर देशभर में तीखी बहस छिड़ गई है।

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अंकिता भंडारी हत्याकांड में नए आरोपों से भूचाल—अभिनेत्री उर्मिला सनावर के दावों ने फिर उठाए ‘VIP एंगल’ के सवाल

देहरादून/हरिद्वार।
उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के बहुचर्चित हत्याकांड को लेकर एक बार फिर देशभर में तीखी बहस छिड़ गई है। सोशल मीडिया पर सामने आए अभिनेत्री उर्मिला सनावर के दावों ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि मानवाधिकार संगठनों, नागरिक समाज और आम जनता के बीच भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अभिनेत्री द्वारा किए गए ये दावे—जिनमें कथित “VIP एंगल”, कॉल रिकॉर्डिंग और अन्य साक्ष्यों की बात कही जा रही है—सरकार और जांच एजेंसियों के सामने पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता की कसौटी खड़ी करते हैं।

मामला क्या है?

अंकिता भंडारी की हत्या 18 सितंबर 2022 को हुई थी। वह एक निजी रिसॉर्ट में कार्यरत थीं। इस जघन्य अपराध ने पूरे देश को झकझोर दिया था। न्यायिक प्रक्रिया के तहत दोषियों को सज़ा भी मिली, लेकिन समय के साथ एक बड़ा सवाल लगातार उठता रहा—क्या हत्या के पीछे कोई प्रभावशाली ‘VIP’ शामिल था, जिसकी भूमिका पूरी तरह उजागर नहीं हो पाई?
इसी प्रश्न के इर्द-गिर्द उर्मिला सनावर के हालिया बयान/पोस्ट घूमते हैं।

उर्मिला सनावर के दावे—क्या कहा गया?

सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट/वीडियो में उर्मिला सनावर ने दावा किया है कि उनके पास कॉल रिकॉर्डिंग और अन्य साक्ष्य हैं, जिनसे कथित तौर पर VIP गेस्ट/एंगल का खुलासा हो सकता है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि राज्य सरकार—विशेषकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी—इस विषय को गंभीरता से लेते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का आदेश देती है, तो कई परतें खुल सकती हैं।
इन दावों में कुछ नामों और घटनाओं का उल्लेख भी सोशल मीडिया पर किया जा रहा है, हालांकि इन आरोपों की स्वतंत्र पुष्टि अभी शेष है

राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया

दावों के सामने आने के बाद विपक्षी दलों और नागरिक समूहों ने सरकार से त्वरित कार्रवाई की मांग तेज कर दी है। उनका कहना है कि—

  • यदि किसी के पास साक्ष्य हैं, तो उन्हें कानूनी दायरे में लाकर जांच एजेंसियों को सौंपा जाए।
  • जांच को स्वतंत्र एजेंसी (जैसे SIT/CBI) को सौंपने पर विचार किया जाए।
  • जांच की टाइमलाइन सार्वजनिक की जाए, ताकि जनविश्वास बहाल हो।

वहीं प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि कानून अपना काम करेगा और किसी भी वायरल सामग्री/दावे की वैधानिक जांच के बिना निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा।

मानवाधिकार दृष्टिकोण: ‘न्याय केवल सज़ा नहीं, सच्चाई भी’

मानवाधिकार संगठनों का तर्क है कि किसी भी मामले में दोषियों को सज़ा मिलना जरूरी है, लेकिन सच्चाई का पूर्ण उद्घाटन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यदि कोई प्रभावशाली व्यक्ति जांच से बाहर रह गया हो, तो यह न्याय की आत्मा पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
उनका कहना है कि—

  • पीड़िता के परिवार को पूर्ण सत्य जानने का अधिकार है।
  • राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राजनीतिक/प्रशासनिक दबाव जांच को प्रभावित न करे।
  • गवाहों और सबूतों की सुरक्षा सर्वोपरि हो।

सोशल मीडिया का दबाव और सार्वजनिक विमर्श

उर्मिला सनावर के दावों के बाद सोशल मीडिया पर #JusticeForAnkita, #VIPAngle, #Transparency जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं। लाखों यूज़र्स सवाल पूछ रहे हैं—

  • “यदि रिकॉर्डिंग हैं, तो अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं?”
  • “VIP एंगल की निष्पक्ष जांच कब?”
  • “एक बेटी के न्याय में देरी क्यों?”

हालांकि, कानूनी विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि सोशल मीडिया ट्रायल से बचना चाहिए और हर आरोप को प्रमाण-आधारित जांच के दायरे में ही परखा जाना चाहिए।

कानूनी पहलू: क्या हो सकता है आगे?

कानून के जानकारों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति/पक्ष प्रासंगिक साक्ष्य प्रस्तुत करता है, तो—

  1. राज्य सरकार SIT गठित कर सकती है।
  2. परिस्थितियों के अनुसार CBI जांच पर भी विचार संभव है।
  3. अदालत के निर्देश पर फ्रेश इन्वेस्टिगेशन/री-ओपनिंग भी हो सकती है।
  4. साक्ष्यों की फॉरेंसिक जांच और कॉल डिटेल्स का वैधानिक सत्यापन अनिवार्य होगा।

सरकार से अपेक्षाएं

जनता और नागरिक संगठनों की अपेक्षाएं स्पष्ट हैं—

  • तत्काल संज्ञान और औपचारिक बयान।
  • स्वतंत्र जांच की घोषणा/समयसीमा।
  • जांच की नियमित सार्वजनिक अपडेट
  • पीड़िता के परिवार की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष: एक बेटी का सवाल, एक राज्य की परीक्षा

अंकिता भंडारी हत्याकांड केवल एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि राज्य की न्यायिक प्रतिबद्धता की परीक्षा है। उर्मिला सनावर के दावे सही हों या गलत—यह तय करना जांच एजेंसियों और अदालतों का काम है। लेकिन दावों की अनदेखी करना भी उतना ही खतरनाक है।
आज जरूरत है निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध जांच की—ताकि न केवल दोषियों को सज़ा मिले, बल्कि समाज को यह भरोसा भी हो कि कानून सबके लिए समान है।

डिस्क्लेमर: इस रिपोर्ट में उल्लिखित बातें आरोप/दावे हैं। अंतिम सत्य कानूनी जांच और न्यायिक प्रक्रिया के बाद ही स्थापित होगा।

✍️ रिपोर्ट: एलिक सिंह
संपादक: Vande Bharat Live TV News
ब्यूरो चीफ: दैनिक आकांशा बुलेटिन, सहारनपुर
📞 खबरें, विज्ञापन, सूचना एवं विज्ञप्ति हेतु संपर्क: 8217554083

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